- Awneet Kumar
कोरोना से लड़तीं प्रेरणादायक महिलाएं

यह तस्वीर 135 साल पुरानी है। इन तीन मेडिकल स्नातकों के नाम हैं, क्रमशः डॉ आनंदाबाई जोशी, कल्याण (भारत) से, डॉ केई ओकामी, टोक्यो (जापान) से और डॉ तबात एम इसलामबूली, दमिश्क (सीरिया) से। ये दुनिया की पहली महिला मेडिकल कॉलेज, पेंसिल्वेनिया (अमेरिका) से अपनी शिक्षा के दौरान एक तस्वीर के लिए पोज़ कर रहीं हैं। ये अपने संबंधित देशों की पहली महिला डॉक्टर हैं, जो एक पश्चिमी देश में शिक्षित हुईं हैं। सभी सामाजिक बाधाओं और रूढ़ियों को तोड़ते हुए, वे चिकित्सा सीखने के लिए अपने-अपने देशों से बाहर गइँ।अपनी मातृभूमि में वापस लौटने के बाद, उन्होंने रोगियों कि मदद की और उनका उपचार किया। 1800 ईसवी के अंत मे, जब अमरीकी महिलाओं को मतदान देने का भी अधिकार नही था, तब ये महिलाएं लाइसेंस प्राप्त डॉक्टर बन गईं।
आज, जब पूरी दुनिया COVID-19 महामारी से संघर्ष कर रही है; हमारे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स, सफाई कर्मचारी, वैज्ञानिक और कई अन्य पेशेवर के लोग इस अदृश्य दुश्मन को हराने के लिए दिन-रात योगदान दे रहे हैं। इस कार्यबल में 70% महिलाएं शामिल हैं। ये मैं नही कह रहा, बल्कि पिछले साल 2019 में WHO द्वारा 104 देशों के कराये गये विश्लेषण के अनुसार आए डेटा का परिणाम है। हमारे सभी बहादुर जाँबाजों के लिए जबरदस्त प्रशंसा और सम्मान के साथ, मैं विशेष रूप से इन 3 महिला डॉक्टरों को सलाम करना चाहूंगा। ये नायिंका जिन्होंने सभी युवा महिलाओं के आने का मार्ग प्रशस्त किया। ये महिलाएं, या तो उन अवसरों से वंचित थीं, या उनहें कमजोर लिंग माना लिया जाता था। ये कोमल हृदय और मज़बूत इरादों वाली महिलाएं, जो आज डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स, वैज्ञानिक हैं और जो हमें सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ्य संस्थानों के वैश्विक कार्यबल के बहुमत का हिस्सा हैं। ये हमें ढाढस दिलाती हैं कि अगर हम संक्रमित होते भी हैं, तो भी वे हमें बचाने मे अपनी पूरी दमखम लगा देंगी। वें 21 वीं सदी की इस महामारी पर काबू पाने में अपनी एड़ी चोटी एक कर देगीं और हमारी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेंगीं ताकि हम सभी अपने सामान्य जीवन में लौट सकें। वें इस समुद्री तूफ़ान को थाम लेंगी, ताकि हम सबकी नावें फिर से स्थिर हो जाएं और हम उन्हें अपने-अपने दिशाओं कि ओर ले जा सकें। हम सभी काम पर वापस जा सकें और हमारे बच्चे अपने स्कूलों में। खेल के मैदान, कैफे, रेस्तरां और सिनेमाघर फिर से भरे जाएं। गाड़ियों, बसों, जहाजों, विमानों सभी मे फिर से इधंन लौट सके। हमारे मजदूर भाई बहन फिर से अपने बच्चों का पेट पाल सकें। हम एक बार फिर से जीवित हो सके।
इसलिए, अगली बार हममे से कोई भी अगर किसी लड़की या महिला की क्षमता पर शक करें और उनकी प्रतिभा को कम आंकें, तो पहले इस मौजूदा समय के बारे में एक बार पुनः विचार करें और इन तीन डॉक्टरों के बारे में भी सोचें जिन्होंने ने स्वास्थ्य सेवा के पेशे में एक क्रांति को जन्म दिया। जिन्होंने न जाने कितनी आने वाले नई पीढ़ी कि महिलाओं को प्रेरित किया। आज अधिकतर देशों के स्वास्थ्य संस्थानों मे ये महिलाएं विभिन्न मेडिकल टीमों में दो तिहाई से भी अधिक कि संख्या मे हैं और कोरोना वायरस को हर परिस्थिति मे मुहतोड़ जवाब दे रही हैं। हम तहेदिल से इन महिलाओं के ऋणी हैं और उन तमाम लोगों का हार्दिक अभिनंदन करते हैं जो पूरे तीव्रता से इस बीमारी को हराने मे लगें हैं।
स्विट्जरलैंड मे अपने मास्टर डिग्री कि थीसिस (थ्री डॉक्टर्स - रिफ्लेक्टिंग आइडेंटिटी ) के लिए ये तस्वीर मेरी प्रेरणास्रोत थी। जब मैंने इस तस्वीर का अवलोकन किया, तो इन तीन महिलाओं के कपड़ों का गौर से विशलेषण किया। मैंने महसूस किया कि वे सभी अपने पहनावे से अपनी-अपनी संस्कृति का नेतृत्व कर रही हैं। कैमरे के सामने पोज देते हुए उनके चेहरे के भाव और उनकी मुद्रा एक मजबूत गैर-अनुरूपतावादी व्यक्तित्व को दर्शातीं हैं। जैसे कि वो कह रहीं हों - 'हमें इस बात की परवाह नहीं है, कि आप हमारे बारे में क्या सोचते हैं, न ही हम आपके मानदंडों, नियमों और शर्तों से सहमति रखते हैं। हम जानते हैं कि हम कौन हैं और हमें इस पर गर्व है '। तस्वीर की तीनों महिलाओं के परिधानों के बारे में आगे अन्वेषण करते हुए ये पता चलता है कि उन्हें, अपनी संस्कृति और अपने मूल के प्रति बहुत सम्मान है। उन्होंने इस फोटो मे अपने पहनावे का चयन बहुत सोच समझ कर किया है।
भारतीय डॉक्टर सुश्री आनंदबाई जोशी ने 'कांजीवरम' सिल्क की साड़ी, थ्री क्वाटर रेशम ब्लाउज के साथ पहना है, जिनके कफ कशीदाकारी किए हुए है। उनके दोनों हाथों में चूड़ियाँ हैं और गले में एक 'चोकर' हार है। कानों में झुमके और माथे पर एक छोटी सी बिंदी है। उनके बाल पीछे की तरह समेंट कर बंधे हुए हैं और उनकी साड़ी का पल्लू उनके कमर के चारों ओर बंधा है। ऐसे साड़ी पहनने का तरीका भारत के महाराष्ट्र राज्य मे सुप्रसिद्ध है। भारत में औरतें अपनी साड़ियां ऐसे तब भी बांधतीं जब उन्होंने किसी कार्य को करने कि ठान ली हो और साड़ी इसमे अड़चन ना बन पाए। विश्वविद्यालय को अपने प्रस्ताव पत्र में, उन्होंने लिखा, "मेरे दोस्तों और जाति के संयुक्त विरोध के खिलाफ मुझे जो संकल्प आपके देश में लाया गया है, वह एक लंबा रास्ता तय करेगा ...मानवता की आवाज़ मेरे साथ है और मै असफल नहीं हो सकती"। 1886 में भारत लौटने के बाद, वह 19 साल की उम्र में कोल्हापुर के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में महिला वार्ड की पहली महिला चिकित्सक के रूप में कार्यरत थीं। इतनी कम उम्र में उनकी उपलब्धियों को देखते हुए, उसके नाम पर शुक्र ग्रह पर एक क्रेटर है।

छवि सौजन्य: विकिमीडिया
उनकी जापानी समकक्ष डॉक्टर सुश्री केई ओकामी ने 'हाओरी' कोट, 'मॉन्टूसुकी किमोनो' और 'हकामा' ट्राउजर्स पहन रखा है। ये पहनावे पारंपरिक जापानी मेंनसवेयर कपड़े है। ये कपड़े महत्वपूर्ण समारोहों एवंम विशेष अवसरों पर पुरुषों द्वारा पहने जाते थें। उनके कपड़े एक स्पष्ट संकेत दे रहे हैं, कि वह किसी भी पुरुष से कम नहीं है। उन्होंने एक हेयरपिन के साथ अपने बालों को समेंट रखा है। वह बाएं हाथ की अनामिका में अंगूठी पहने हुए भी दिख रही है। 1889 में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, वह वापस जापान लौटीं और एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में सेवा की और ट्यूबरक्लोसिस से पीड़ित लोगों का भी इलाज किया। बाद मे उन्होंने इस्तीफा दे दिया क्योंकि सम्राट मीजी ने उनकी देखभाल से इनकार कर दिया क्योंकि वह महिला थी। उसके बाद, उन्होंने एक होम क्लिनिक खोला और वहां से संचालन शुरू किया। उन्होंने एक गर्ल्स स्कूल की वाइस-प्रिंसिपल के रूप में काम किया और अपनी युवा पीढ़ी को प्रेरित किया।
इसके अलावा, सीरिया से डॉक्टर सुश्री तबात एम इस्लाम्बूली एक पारंपरिक सीरियाई पोशाक पहनें हुई है, जिसमे एक हेडकवर भी है। इसे 'थाब' कहा जाता है। विश्वविद्यालय में, वह अपने काले, रेशमी कफ्तान पहनने के लिए जानी जाती थीं। उनके सिर पर एक सीरियाई 'र्बबर' मुकुट बंधी है। विशेष समारोहों में अथवा शादी के समय इसे सिर के चारों ओर बांधा जाता है। चांदी के पदकों के साथ लंबे मेटल चैन इस मुकुट के दोनों ओर से लटक रहे हैं, जोकि विस्तृत झुमकों की छाप देती हैं। वह अपने गले मे सिक्कों से बने एक विस्तृत हार को भी सजा रही है जिसे 'कीरतन' कहते है। उन्होंने प्रसिद्ध सीरियाई चमड़े के जूते भी पहने हैं। उनके बगल में सीरियाई 'क़नून' नामक एक वाद्य यंत्र है। उनके बालों के कुछ हिस्से एक व्यवस्थित तरह से हेडकवर से बाहर आ रहे हैं, जैसे कि उन्होंने अपने आउटलुक पर अत्यधिक ध्यान दिया है। परंपरा और रीति-रिवाजों को बरकरार रखते हुए वह अपने बारे में एक मजबूत और आत्मविश्वास वाली छवि पेश कर रही है। वापस लौटने के बाद उनका जीवन इतनी अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं है। लेकिन यह ज्ञात है कि वह 20 वीं शताब्दी के मोड़ पर दमिश्क में कुछ समय के लिए काम पर लौटीं, फिर 1919 में काहिरा चली गईं, जहाँ 1941 में उनकी मृत्यु हो गई।
इस छवि में कपड़े और अभिव्यक्ति को इतनी दृढ़ता से चित्रित किया गया है, कि व्यक्ति का स्वभाव बहुत स्पष्ट है। वे जानते हैं कि "वे कहाँ से आते हैं?", "वे कौन हैं?" और "वे क्या कर रहे हैं?" उन्हें अपने जीवन में कुछ भी हासिल करने के लिए हमारी अनुमति या पुष्टि की आवश्यकता नही है। यह तसवीर दुनिया को अपनी असली ताकत दिखाने के लिए, सभी पारंपरिक और रूढ़िवादी विचारों को धता बताने वाली युवा महिलाओं का एक साहसिक चित्रण है। ताकत जो कहती है कि हम खुद पर विश्वास करते हैं। और जब तक विश्वास है, तब तक कुछ भी संभव है।
धन्यवाद
अवनीत कुमार